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देवों की कथा कह रहे तारे / कुमार रवींद्र

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चांदनी है रात
देवों की कथा कह रहे तारे

बहुत दिन के बाद
आए हैं सखी हम
खुली छत पर
उधर देखो चांद का है
नागमणियों का दुआघर

सांझ­बीते
सूर्यरथ के अश्व बंधते वहीं द्वारे

उसे पूजें
जो अलौकिकता
हमारे पास बिखरी
बेल बेला की चढ़ी जो इधर
कैसी सखी निखरी

जपें आओ
मंत्र वे
जो सप्तऋषियों ने उचारे

शिला जो हो रहीं सांसें
उन्हें भी मधुमास कर लें
देह के जो ताप हैं
उनकी तचन भी
आओ हर लें

करें मीठे
नेह के वे ताल
जो हैं हुए खारे