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देश निकाला / पाब्लो नेरूदा / विनोद दास

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थके पत्थर के किलों के बीच
ख़ूबसूरत प्राग की गलियाँ
मुस्कराहटें और साइबेरियाई भोज के दरख़्त
काप्री के जज़ीरे में दिखती आग, कँटीली रोज़मेरी की ख़ुशबू
और आख़िरी में मोहब्बत
जी हाँ ! ज़रूरी मोहब्बत ने मिल-जुल कर
मेरी इस समूची ज़िन्दगी को
बेहिसाब चैन से भर दिया है

और इस दरम्यान
एक हाथ और उसका दूसरा दोस्त हाथ
मेरी आत्मा के पत्थर में काला सूराख़ करते रहे
और इसमें मेरा देश जलता रहा
मुझे पुकारता हुआ, मेरा इन्तज़ार करता हुआ
बने रहने, बचे रहने, सह सकने के लिए हौसला आफ़ज़ाई करता हुआ

देश निकाला का नक़्शा गोल होता है
एक परिक्रमा की तरह, एक छल्ले की तरह
आपके पाँव एक गोल चक्कर में घूमते हैं

आप मुल्क़ पार करते हैं
और यह आपका मुल्क़ नहीं है
रोशनी आपको जगाती है और यह आपकी रोशनी नहीं है
रात आती है लेकिन आपके तारे ग़ायब हैं
आप भाइयों को खोज लेते हैं लेकिन वे आपके ख़ून से ताल्लुक नहीं रखते
आप एक लज्जित प्रेत हैं
उन लोगों को ज़्यादा प्यार नहीं करते
जो आपको बेतहाशा प्यार करते हैं
और अभी भी आपको अज़ीब सा लगता है
कि आप अपने देश की नोकीली चुभन
और अपने लोगों की बेहिसाब लाचारगी को महसूस करते हैं
तमाम तीखे मसले आपका इन्तज़ार कर रहे हैं
जो आपको दरवाज़े से ही उलझा देंगें ।

वैसे मैं अपने दिल में
फिजूल की निशानियाँ लाज़िम तौर पर याद करता हूँ
मसलन सबसे मीठा शहद मेरे मुल्क़ के दरख़्त में जमा होता है
और मैं हर परिन्दे से उम्मीद रखता हूँ
कि दूर से आता हुआ वह गाना सुनाएगा
जो भोर की नम रोशनी में
मुझे अपने बचपन से जगा दे
मुझे अपने मुल्क़ की ग़रीब मिट्टी, गड्ढे, रेत
और रेगिस्तान के खनिज
उनके उस छलकते जाम से ज्यादा अच्छे लगते हैं
जो मेरी सलामती के लिए
पुरजोश से मेरे लिए तैयार करते हैं
मैं बग़ीचे में खो जाता हूँ और अकेला महसूस करता हूँ
मैं उन बुतों का भोंदू दुश्मन था
जिन्हें कई सदियों से रुपहली मक्खियों
और सुडौलपन के बीच गढ़ा गया था

हाय देश निकाला !
दूरियाँ
गहरी होती जा रही हैं
एक ज़ख़्म के जरिए हम साँस लेते हैं
जीना एक ज़रूरी ज़िम्मेदारी है
लिहाज़ा ऐसी आत्मा जिसकी जड़ें नहीं हैं
एक अन्याय है
देश निकाला दरअसल उस ख़ूबसूरती को ठुकराता है जो आपको मिली है
यह अपने खुद के अभागे मुल्क को तलाशता है
और केवल वहाँ शहादत की तमन्ना करता है या चुप रहता है

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास