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देहरी पर दिया / अज्ञेय
Kavita Kosh से
देहरी पर दिया
बाँट गया प्रकाश
कुछ भीतर, कुछ बाहर :
बँट गया हिया-
कुछ गेही, कुछ यायावर।
हवा का हलका झोंका
कुछ सिमट, कुछ बिखर गया
लौ काँप कर फिर थिर हुई :
मैं सिहर गया।