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देह / भाग 3 / शरद कोकास

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देह हूँ मैं अपनी परिभाषाओं में निर्बंध
पृथ्वी हूँ मैं आकाश हूँ अंतरिक्ष हूँ
सूरज चांद सितारे ग्रह-नक्षत्र सब कुछ मैं ही हूँ
मीलों लंबे हैं मेरे हाथ
पांवों से नाप सकती हूँ मैं तीनों लोक
शक्ति का पुंज हूँ मैं मैं ही हूँ विधि का विधान
मैं ही हूँ सर्व शक्तिमान
आगत अतीत वर्तमान
मेरे होने से है यह दुनिया
मेरे जन्म के साथ ही जन्मी है यह दुनिया
मेरे अस्तित्व में ही है इस दुनिया का अस्तित्व
इस दुनिया का अंत भी मेरे साथ ही होगा
अपने पूरे होशोहवास में समस्त कायनात में
करती हूँ मैं यह ऐलान
अन अल हक़, अन अल हक़, अन अल हक़

भयावह विचारों के निविड़ अंधकार में
हर रात सर उठाता है एक डरावना सच
स्वप्न में दिखाई देती यह चार कांधों पर जाती हुई
मोह के पथ पर दौड़ती है अमरत्व की इच्छाएँ
रोक नहीं पाती अपनी ही लाश का महाप्रयाण
देह की अंतिम परिणति देखती हैं जीवित लाशें
करोड़ों कठों से उठता है आर्तनाद
 
असंभव असंभव ,हमने नहीं सोचा था शरीर का यह हश्र
हम तो मृत्यु के दुर्ग पर अपनी विजय पताका गाड़ आए थे
हम पहुँच चुके थे ज्ञान के चरमोत्कर्ष पर
भयमुक्त हो ब्रह्माण्ड में बांट रहे थे अर्जित ज्ञान
हमारी चेरी है प्रकृति हमारा चाकर है विज्ञान
नहीं नहीं हमें हर्गिज़ नहीं स्वीकार यह हार
 
अपने ही शोर से उपजे सूनेपन में डूबती है आवाज़
नींद में फूटती है रुलाई और श्लोकों में बदल जाती है
शरीर माद्यम् खलु धर्म साधनम्
खलु धर्म साधनम् शरीर माद्यम्
कुमारसंभव के रचयिता कालिदास कहाँ हो तुम
कहाँ तुम्हारी देहसम्बन्धों की व्याख्या
कहाँ हो वात्सायन देह के कोणों में जीवन का सार देखने वाले
कहाँ हो चार्वाक कष्ट सहती देह के लिए
इसी जहान में समस्त सुखों की कामना करने वाले
अपने अनात्मवाद में देह को ही आदिम और अंतिम मानने वाले
बुध्द कहाँ हो तुम
कहाँ हो डार्विन कहाँ हो फाक्स,हॉल्डेन,ओपेरिन
सर हरगोविंद खुराना तुम कहाँ हो

कोई उत्तर नहीं आता देहातीत हो चुकी वाणी से
कोई जबाब नहीं आता दर्शन की गुफाओं से
विज्ञान की अट्टालिकाओं से कोई आवाज़ नहीं आती
सुनाई देती है स्मशान की निस्तब्धता में
जलती हुई लकड़ियों की तिड़ तिड़ करती आवाज़
एक गंध पसरती है जलते हुए कपाल की
धुएँ में उड़ जाता है एक अनुत्तरित प्रश्न
मिट्टी में दफ़्न हो जाता है एक सनातन सवाल
मन रब्ब का, मा दीनो का, मा कुनता तक़ोलो फ़ी हाज़ल रज़ूल
कौन तेरा रब, क्या तेरा दीन
जब तलक ज़िन्दा था ऐ आदमज़ाद
क्या कहता था तू इनके बारे में
यह कैसा अवसाद है जो देह के जन्म के साथ ही
अंत के विचार में बदलने लगा है
धर्मग्रंथों के पन्नों पर जिसकी काली छाया है
उसी के इर्द -गिर्द मंडरा रही हैं वेदों की ॠचाएँ
आख़िरत में इसके ही कल्याण की कामनाएँ
इंजील में इसके स्वर्ग से निष्कासित किए जाने का बयान
तोरैत में इसके समर्थन में पुकारता आसमान
शब्दों में शब्दातीत होने का भ्रम लिए
यह दृश्य पर अदृश्य के स्वामित्व का साहित्य है
और इसे उस देह ने रचा है जो दृश्य है

यह वर्चस्व का शंखनाद है दर्शन की रणभूमि में
जहाँ भौतिक और प्रत्यय के उदघोष आपस में इतने गडमड
कि पहचानना मुश्किल मूल की प्रतिध्वनि
देह तो नश्वर है वत्स इसकी चिंता बेमानी है
क्षणभंगुर जग में माया है काया ,यह तो आनी जानी है
पाप से उपजी है मानव देह इसे नष्ट होना है
आत्मा का चोला है यह जिसका मैल हमें धोना है
रुह की फ़िक्र कर इंसा बाकी तो सब मिट्टी है
देह के साथ ही सब कुछ ख़त्म होना है

हवाओं में अट्टहास करते हैं आवाजों के दैत्य
टी वी और मोबाइल के पर्दों से झरते हैं
देह को मीठी नींद में सुला देने वाले रस
अवचेतन की बेसुधी में लगातार चलते हैं शब्दों के हथौड़े
अलग कर देते हैं कानों और आँखों से दिमाग

नींद खुलने पर देह से एक पुकार उठती है
भूख अपने चरम में पेट टटोलती है
झोपडी की छत से दिखाई देता है जब आसमान
बंद कर दिया गया मुंह भी सवाल करता है
उस देह के लिए क्यों बड़े बड़े भवन
पूजाघर कीमती वस्त्र और छप्पन भोग
जबकि वह निर्गुण और निराकार है
क्यों दुनिया में दुःख ,चिंताएं और निर्धनता
जबकि धन ही सारे सुख का आधार है
क्यों सब कुछ है कुछ लोगों के पास
बाक़ी सारी जनता बेरोजगार है बेकार है

मंजीरों ,नगाड़ों ,गिटारों के शोर में
कुचल दी जाती हर आवाज़
सिर्फ सुनाई देती अट्टालिकाओं से आती आकाशवाणी
अमृत के कैप्सूल में छुपा विष निगलती यह देह
देवताओं के भेष में रहने वाले मनुष्यों की ज़बानी
नश्वर और विनाशी देह के लिए इस लोक में
सुख की कामना मत कर ऐ इंसान
तू तो विधाता के हाथों का बस एक खिलौना है
तेरे लिए तो अंततः माटी और राख ही बिछौना है
तेरे लिए खुल जाएँ स्वर्ग के समस्त दरवाज़े
जन्नत नसीब हो तुझे
मे गॉड ब्लेस यू माई चाइल्ड
मे दाय सोल रेस्ट इन पीस
  
भीतर के गहन अंधकार में सुनाई आती है सिर्फ
आवागमन करती आवाज़ों की पदचाप
जिन्हें छूने या विरत होने के द्वंद्व में
सचल हो उठती है यह सजीव देह उनके साथ
और यथार्थ के पत्थरों से ठोकर खाकर
दर्द की घाटियों में दम तोड़ देती है

कई लुभावने दृश्य हैं इन आवाज़ों के पर्दे में
सिर्फ इस लोक के नहीं तथाकथित अन्य लोक के भी
जहाँ हर पुण्यवान देह के लिए आरक्षित हैं सुविधाएँ
अहा ! मधु के झरने, अहा ! मखमली बिछौने
हूरो गिलमाँत ,अप्सराएँ ,सुख के स्वाद सलोने
वहीं पापी देह के लिए सुनिश्चित नर्क की यातनाएँ
उफ़ झुलसाती आग उफ़ दहकती चिताएँ
 
धर्मग्रंथों के फड़फड़ाते पन्नों और उपदेशों में
स्वर्ग के आधिपत्य में नर्क साँस ले रहा है
जहाँ पुलसिरात पर कामयाबी से गुज़रती देह का
छूट चुकी देह पर शासन है
जहाँ सुनिश्चित है इस लोक और उस लोक में
एक अपराध के लिए दो बार दंडित किया जाना
शासक का स्वर्ग यहाँ भी है वहाँ भी
शासित का सिर्फ नर्क यहाँ भी और वहाँ भी
जीते जी स्वर्ग की यात्रा करने वालों के लिए
टिकटें उपलब्ध हैं इस नई सहस्त्राब्दि में
स्वर्ग जाने को इच्छुक देहें
कृपापूर्वक इस आधुनिक यान में बैठ जाएँ
कैरेबियन और हवाई द्वीप की ओर हैं इसकी उड़ाने
यह यान लॉस वेगास और बैंकाक को जाता है
नर्क में जाने को विवश समस्त उपेक्षित वंचित पापी देहें
अपने ज़ख्मी पांव घसीटते इस ओर निकल जाएँ
यह नालियाँ धारावी की स्लम की ओर जाती है

विशाल साम्राज्य है यहाँ झूठ और पाखंड का
जिसे सदियों की मेहनत से खड़ा किया है कुछ देहों ने
जहाँ इस जन्म के एक दुख के ऐवज में
अनेक कल्पित जन्मों तक सुख के विकल्प है
देह मोह में अंधी हो चुकी इच्छाओं में
फिर उसी देह में जन्म लेने की चाहत है
महात्माओं के ख़ज़ानों में चाहत की पूर्णता के उपाय
या चाहत से मुक्ति के रेडिमेड नुस्खे
स्त्रियों की चाहत में सात जन्मों तक उसी पति की देह
इसलिए कि पति बगैर मोक्ष सम्भव नहीं
पुरुषों की चाहत में इसी जन्म में नई स्त्री देह
इसलिए कि उसने ही रचे हैं नियम
अपने चरम पर है चाहत का यह बाज़ार
जहाँ एक ओर देह का देह से मिलन ही
जीवन की सबसे नायाब तफ़रीह है
वहीं सर्वोत्कृष्ट मनोरंजन है देह से देह का युध्द
क्रूरता के इस साम्राज्य के विनाश के लिए
जब भी सर उठाता है कोई स्पार्टकस या वेलेंटाइन
सलीब पर लटका दी जाती है उसकी देह
फिंकवा दी जाती है भूखे कुत्तों के सामने
डुबो दी जाती है ज़हर के प्याले में
हाथी के पावों तले कुचल दी जाती है

देह के अनदेखे भविष्य की यह आग है
मनुष्य के मानस में धधकती हुई
जिसकी न महसूस होने वाली आँच में
झुलस रहा है संवेदनाहीन देह का वर्तमान
वहीं अपने अकाटय तर्क लिए आत्मा के पक्षधर
देहात्मवादियों और अनात्मवादियों की शाब्दिक रिक्तता में
आत्मा की अभौतिक उपस्थिति के पाठ में लीन हैं

यह अनस्तित्व के अस्तित्व की चकाचौंध है
जहाँ गुम है पल पल साबित होता यथार्थ
कि मरने के बाद कुछ शेष नहीं रहता आदमी का
कि यह देह आत्मा से संचालित नहीं है
और इस देह का अवसान ही है आत्मा का अवसान
आश्चर्य आत्मा की अनुपस्थिति में यह देह
उनके लिए इतनी उपेक्षित कि मिट्टी