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देह का संगीत / सुरेन्द्र स्निग्ध
Kavita Kosh से
बहुत अलौकिक है
तुम्हारी देह का संगीत
मेरी टूटती-उखड़ती साँसों को
एक बार फिर
सँवारा है तुमने
अपनी गर्म साँसों से तुमने
लगा दी हैं इसमें
जगह-जगह मज़बूत गाँठें
तुम्हारे उन्नत उरोजों ने
मेरी कमज़ोर छाती में
भर दी है नई ऊष्मा
तुम्हारी देह के संगीत ने
रच दी है मेरे जीवन में
नई-नई सिम्फ़नी
इसी संगीत के सहारे
मैं जीने लगा हूँ
फिर-फिर नई ज़िन्दगी ।