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देह मोह / अंचित
Kavita Kosh से
एक फूटी आँख दूसरी रहते हुए भी याद आती है
एक कटे हाथ का दुख झलकता है दूसरी बाँह पर।
कानी ऊँगली का आखिरी छोर भी तिरस्कृत नहीं किया जा सकता
तलवों की घिरनियों से है प्रथम प्रेम का दीर्घ सम्बन्ध।
असुरक्षित महसूस होता है कोई जब उतरता है देह में।
निजता का चरम पल भी अक्षुण्ण नहीं होता।
जो झेलता हूँ, वह साथ-साथ झेलती है देह-
जो भी यात्राएँ है सब साथ, उनके सब चिह्न देह पर।
भूल जाता है मन कभी कभी।
देह सब याद रखती है।