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दोस्त के नाम / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
वो तुम्हारा मुस्कुराता हुआ चेहरा
कि जैसे किसी सहरा में
दिख जाए कोई फूल
वो हर तार झनझनाती
पुरकशिश आवाज़
जैसे किसी वायलिन से फूटता हो
प्यार का सैलाब
वो खुशगवार आंखें तुम्हारी
कि जैसे स्याह रात में
दो जुगनू जगमगाते हों
वो जोश में उट्ठे हुए दो हाथ
देते हुए सदा
करते हुए आग़ाज़
रचनाकाल:1992