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दोस्त से / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
यह हमारी आत्मा की
दुर्निवचार प्यास
इस समान अतृप्ति से
आ जाते हम तुम पास
पर न दानी हम, न तुम
रीते हुये हम लोग
संवेदना केवल
हमारे पास
कि बीते हुये हम लोग
फिर भी अपने पास
लगभग एक सा इतिहास
इसलिये आओा बढ़ायें
दोस्ती का हाथ
लेके इक विश्वास।