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दोहावली-5 / बाबा बैद्यनाथ झा
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फूले सरसों खेत में, फूले लाल पलास।
मन-मन में जगने लगी, प्रेम-मिलन की आस॥
वन-उपवन में खिल गए, सुन्दर-सुन्दर फूल।
दुनिया ही लगने लगी, अब अपने अनुकूल॥
कोयल अपनी कूक से, देती है आवाज।
उठो प्रेम बाँटो सभी, आया है ऋतुराज॥
हैं सबके मन मोहते, ये महुए के फूल।
विचलित हैं सब संयमी, जप-तप सबको भूल॥
यह कैसी मादक हवा, सटे प्रिया से कंत।
तन-मन सब बेसुध हुए, आया नवल बसंत॥
यहीं बसे अमरावती, कल्पवृक्ष के फूल।
आयेंगे कश्मीर जब, जग जायेंगे भूल॥
नारी है तो सृष्टि है, यह प्रभु का वरदान।
नारी की पूजा जहाँ, बसते हैं भगवान॥
रंगमंच असली यही, मानव जीवन खेल।
सूत्रधार भगवान हैं, उनके हाथ नकेल॥
शंका में जो जी रहा, समझो है नादान।
उसका जीना भी नहीं, होता है आसान॥