दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 23
दोहा संख्या 221 से 230
जीवन मरन सुनाम जैसें दसरथ राय को।
जियत खिलाए राम राम बिरहँ तनु परिहरेउ।221।
श्री प्रभुहिं बिलोकत गोद गत सिय हिय घायल नीचु।
तुलसी पाई गीधपति मुकुति मनोहर मीचु।222।
बिरत करम रत भगत मुनि सिद्ध ऊँच अरू नीचु।
तुलसी सकल सिहात सुनि गीधराज की मीचु।223।
मुए मरत मरिहैं सकल घरी पहरके बीचु।
लही न काहूँ आजु लौं गीधराज की मीचु।224।
मुएँ मुकुत जीवत मुकुत मुकुत मुकुत हुँ बीचु।
तुलसी सबहे तें अधिक गीधराज की मीचु।225।
रघुवर बिकल बिहंग सो बिलोकि दोउ बीर।
सिय सुधि कहि सिय राम कहि देह तजी मति धीर।226।
दसरथ तें दसगुन भगति सहित तासु करि काजु।
सोचत बंधु समेत प्रभु कृपासिंधु रघुराजु।227।
केवट निसिचर बिहग मृग किए साधु सनमानि।
तुलसी रघुबर की कृपा सकल सुमंगल खानि।228।
मंजुल मंगल मोदमय मूरति मारूत पूत।
सकल सिद्धि कर कमल तल सुमिरत रघुबर दूत।229।
धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिर समीर कुमारू।
अगम सुगम सब काज करू करतल सिद्धि बिचारू।230।