भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा / भाग 9 / महावीर उत्तरांचली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महंगाई के दौर में, कटुता का अहसास
बदल दिया है भूख ने, वर्तमान इतिहास।81।

सदियों से निर्धन यहाँ, होते रहे हलाल
धनवानों के हाथ में, इज़्ज़त रोटी-दाल।82।
 
छह ऋतु, बारह मास हैं, ग्रीष्म-शरद-बरसात
स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात।83।
 
कूके कोकिल बाग में, नाचे सम्मुख मोर
मनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर।84।
 
खूब संपदा कुदरती, आँखों से तू तोल
कह रही श्रृष्टि चीखकर, वसुंधरा अनमोल।85।
 
मन प्रसन्नचित हो गया, देख हरा उद्यान
फूल खिले हैं चार सू, बढ़ा रहे हैं शान।86।
 
मानव मत खिलवाड़ कर, कुदरत है अनमोल
चुका न पायेगा कभी, कुदरत का तू मोल।87।
 
आने वाली नस्ल भी, सुने प्रीत के गीत
कुदरत के कण-कण रचा, हरयाली संगीत।88।
 
फल-फूल कंदमूल हैं, पृथ्वी को वरदान
इन सबको पाकर बना, मानव और महान।89।
 
कर दे मानव ज़िन्दगी, कुदरत के ही नाम
वृक्ष -लताओं पर लिखा, प्यार भरा पैग़ाम।90।