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दो पृष्ठ / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
आकाश रखा हुआ था दो तहों में तहाकर ।
तह खोलते ही
भोर की दोनो आँखों से रश्मि आकर
बींध गई सन्ध्या काल के ललाट पर ।
अब परमेश्वर सस्नेह अपने दोनो हाथों से
यत्न से सज़ा रहे हैं आज के दिन की चिता
अभी - अभी चले गए हैं वे ।
अन्तिम दर्शन के लिए दिगन्त में आधा चाँद आकर
जैसे ही खड़ा हुआ,
उसने देखा,
पूरब और पश्चिम के
दोनो पृष्ठों पर
झिलमिला रही है मृत्यु की कविता !
जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित