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दौड़ता चला आया / राजी सेठ
Kavita Kosh से
वहाँ
उस नगर में
उस बरगद के नीचे
भूरे रंग के दरवाजों वाला
एक घर था
एक माँ थीं
घर
उसी नगर में
उसी बरगद के नीचे
भूरे रंग के दरवाजों वाला
अब भी है
माँ
उस घर में
अब भी है
पर वह मेरी नहीं
उन बच्चों की माँ है
जिनका बचपन
मुझे मेरे घर को
मेरी माँ को
धकियाता दफनाता
मेरे पीछे पीछे चहकता
खिलखिलाता दौड़ता चला आया