भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती-३ / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
धरती
करती विलाप
चली भी जाए
अकल में
दूर
कहां है पांव ?
बेचारी
इसी चिंता में
पड़ी पड़ी
झुलस गई !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"