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धरती कितना ढोती वजन / बी. एल. माली ’अशांत’

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हेली मेरी !
धरती कितना ढोती वजन !
आकाश कितना भारी हो गया !
तुम्हारे पांवों बांध दिए पत्थर
तुम कितनी दोरी चलती हो मेरी साथिन
तुम कितनी दोरी चलती हो मेरी काया की मंगेजन ।

हेली मेरी !
तुम्हारे लिए ही बनाई है
रेडियोधर्मी विकिरणें
बेसुध कर दी है तुम्हें
सूंधा कर सूंधनी
तुम्हारे भीतर लगी हुई है आग
परमाणु अस्त्र-शस्त्रों की
‘स्टार-वार’ की
तुम्हारी सूरत अलसा गई है मेरी साथिन
मुरदानगी छा गई है चेहरे पर
रौनक चर गई है बीसवीं सदी

हेली मेरी !
तुम देखो भीतर के फोड़े
मानवता की काया के भीतर उभरे हुए ।
भीतर ऊग आया है विध्वंध ।
भीतर जोत देख मेरी साथिन
भली-भांति देख !

हेली मेरी !
कच्ची कूंपल छोड़ दी जगह
विनास देख मुरझा गई है
कैसे पांघरेगी वह !
चिड़िया का चूंहचांट कौन सुने ?
वह रोती फिरती है बेचारी
सुनाती फिरे है जीवन-राग ।

हेली मेरी !
अनंत में उग आया है विध्वंश
कौन सुनेगा गायों का रंभाना
कौन देखेगा मग्न होते खरगोसों की किल्लोल
हिरनियों का हृदय कौन देखेगा ?

हेली मेरी !
तुम्हें सुनाई पड़ती है क्या कबूतरों की शांति-वार्ता
मुड़ता दिखाई देता है क्या तुम्हें आदमी
कहीं कोई बाज तो बैठे नहीं बतला रहे हैं ।
तुम भली-भांति देख लो !
हां, तुम भली-भांति देखो मेरी साथिन
कहीं कोई सिकरा (बाज) शिकार नहीं कर ले काया चिड़कली का
मुंह में ले नहीं ले समस्त वैभव
धरती का
तुम्हें दिखाई देती है क्या जीवन-पंखुड़ियां !

हेली मेरी !
शायद तुमने बहुत अर्से बाद देखें होंगे
ऐसे पुष्प-विमान विनास के
आसमान में टंगा विध्वंश
तुमने पहली बार देखा होगा
तुम्हें सुनाई देती है क्या जीवन-राग ?
मुड़ता दिखाई देता है क्या आदमी ?
मेरी साथिन ! तुम भली-भांति देख लो,
कहीं मौत नजदीक तो नहीं आ रही है
इस सृष्टि के ।
मुझे तो अब छाछ से भी डर लगने लगा है
बताओ तुम क्या सोचती हो ?
क्या देखती हो ?
क्या सुनती हो ?

अनुवाद : नीरज दइया