धरती की तबियत ठीक नहीं है
इसीलिए बात-बात पर
झुंझला उठती है
अकारण ही मुँह फुला लेती है
किसी बात का गुस्सा
किसी बात पर उतारती है
धरती की तबियत ठीक नहीं है
इसीलिए हवा आहिस्ता बहती है
गुमसुम परिंदे पंख नहीं फड़फड़ाते
नदियाँ उदासी के साथ
फुसफुसाती हैं
धरती की तबियत ठीक नहीं है
इसीलिए हमलोग
अकारण ही गुर्राने लगे हैं
घृणा के काँटे हमारी देहों में
उगने लगे हैं
संशय के अँधेरे ने
जीवन की गरिमा छीन ली है