भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती गगन हो गयी / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
साधना संकलन हो गया।
प्यार का पल्लवन हो गया।
आपने छू दिया, ज्ञान की
अग्नि का प्रज्वलन हो गया।
आ गयी जनवरी लौटकर
शीत का आकलन हो गया।
एकदा नैमिषारण्य में
ऋषिगणों का मिलन हो गया।
शक्ति की अर्चना हो गयी,
शान्ति का संचयन हो गया।
दीप जबसे जलाया गया,
ज्योति का उन्नयन हो गया।
आज धरती गगन हो गयी,
आज धरती गगन हो गयी।