धरती पर / अवधेश कुमार जायसवाल
सर्र-सर्र बहै छै पछिया, झूमै छै गाछ वृक्ष
पत्ता पगलाय गेलै, बौरैलै फूल
नाचै छै मोर वन में, कहाँ गेलै धूल
झमाझम वर्षा में लड़कन विभोर
गैया गोहाल गेलै, खेतवा किसान
खेत भरै पानी सें, बरसोॅ भगवान
बदरा में छुपी-छुपी देखै छै दिनकर
चाहै छै आवै लेॅ दौड़ी केॅ धरती पर
मानव केॅ झोरी में
कनमा तिजोरी में
नै अटलै कोयल केॅ बोल गे बहना
मनमा में उठलै हिलोर गे बहना।
पिया परदेश गेलै
आखिया पथराय गेलै
नै ऐलै एक्कोॅ ठोॅ पाती गे बहना
ननदी उड़ाबै मखौल गे बहना।
सेजबा आबेॅ काटै छै
अचरा उधियाबै छै
नथिया गड़ै पुरजोर गे बहना
निनिया चोराय गेलै चोर गे बहना।
आबकी जे एैतेॅ तेॅ
दतिया देखैतै तेॅ
लेबै अचरा में मुखड़ा छिपाय गे बहना
अबकी तेॅ मारबै ललचाय गे बहना।
गहना तिजोरी में
फुदना पेटारी में
लहँगा अटारी छिपाय गे बहना
अबकी तेॅ देबै बुझाय गे बहना।
सासु जों कहतै तेॅ
ननदी समझैतै तेॅ
तैयोॅ हम्में रहबै अंठाय गे बहना
आबेॅ होय जैबै कसाय गे बहना।