धरती री साँढ़ पर
आभै रो जीन मांड
चाँद सूरज रै पागड़ा में पग दे’र
पून री टिचकारी देता
दिन रो ढ़ोलो’र रात री मरवण
बे भाण बगता ही जावै-
धर कूँचा धर मजळां
धर कूँचा धर मजळां
बापड़ी अगूण’र आंथूण तो
घणा ही हेला मारै-
बटाऊड़ा, चनेक तो बिसांई ल्यो रै,
बैत नै पाणी पाल्यो रै,
पण हठीलै जोबन रा गैला तो
सदा ही सुणी अणसुणी कर’र चालै !