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धर्म आधार / प्रेमलता त्रिपाठी
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जहाँ कामना धर्म आधार होगी।
वहाँ जीत निश्चित नहीं हार होगी।
न होगी अधूरी कहानी हमारी,
कि एैसी कलम में सर्जन धार होगी।
महकती धरा की नयी हर सुबह हैे,
मुझे हर कठिन राह स्वीकार होगी।
सभी मार्ग अवरुद्ध करती निराशा,
सबल मन सफलता सदा द्वार होगी।
विकलता हृदय की बढ़े ज्ञान के पथ,
कुशलता सतत भावना सार होगी।
नवल कल्पना हों दिशाएँ प्रकाशित,
शिखर चूम लें आस साकार होगी।
सुगम साधना पथ बढ़े चल पथिक मन
डगर हर कठिन प्रेम बौछार होगी।