धर्म वंचकों को यदि मुझसे
कभी मित्रता हो स्वीकार
वे मेरे दुःखों के बदले
इतना मात्र करें उपकार,--
मेरे मरने बाद देह की
रज से ईंटें कर तैयार
चुनवा दें वे मदिरालय के
खँडहर की टूटी दीवार!
धर्म वंचकों को यदि मुझसे
कभी मित्रता हो स्वीकार
वे मेरे दुःखों के बदले
इतना मात्र करें उपकार,--
मेरे मरने बाद देह की
रज से ईंटें कर तैयार
चुनवा दें वे मदिरालय के
खँडहर की टूटी दीवार!