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धर कूंचा धर मजळाँ / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
बटाऊ, चाल्यां मजलां मिलसी।
मनरा लाडू खार कदे'ई ,सुण्यो न कोई धाप्यो?
उग्यो हथेळी रुंख कणाई,देख्यो नहीँ फलाप्यो!
सूरज बो हि जको रात री
छाती फाङ निकळसी
बटाऊ!, चाल्यां मजलां मिलसी।
गैले रो तो काम अतो ही ,पग ने सीध बतावै,
बो मजळां नै घर बैठां ही
किण नै ल्या'र मिलावै,
इसी हुयां तो पग आळां रा
डाँव पांगळा धरसी,
बटाऊ!, चाल्यां मजलां मिलसी।
तपो तावङा लूआं बाजौ,
चावै चढो थकेलौ,
पण बगतो जा सुण धर कूंचा धर मजळाँ रो हैलो
जद सपनै री कळी थारली
फूल साच रो बणसी!
बटाऊ!, चाल्यां मजलां मिलसी।