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धान-गंध-2 / एकांत श्रीवास्तव
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यहॉं
इसी मौसम में
लौटता है वसन्त
जब कटता है धान
और महक उठती है
मिट्टी की देह
इसी मौसम में
फूलते हैं गेंदे के फूल
गाती है मॉं लोरी
और पीतल की
जल भरी थाली में
उतरता है चन्द्रमा
उतार दो
एक कमीज की तरह
अपनी थकान
गीत के जल में
डुबो लो अपना मन
और टॉंक लो
सपनों के अंधेरे में
अपनी पसन्त का तारा
जब पकता है बालियों का दूध
बजती हैं बैलों की घंटियॉं
झरते हैं मुनगे के फूल
और कटता है धान
लौटता है वसन्त
यहां इसी मौसम में.