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धारावाहिक 6 / वाणी वंदना / चेतन दुबे 'अनिल'

(हिन्दी काव्य का इतिहास)

भारत के इन्दु सम भारतेन्दु हो गए हैं,
मैथिली की शरण में गुप्त जी प्रत्यक्ष हैं।
कवि हरिऔध जो कि पांडित्य से पूर्ण काव्य,
रचने में जाने कितने ही महादक्ष हैं।
राष्ट्रकवि दिनकर भानु सम भासमान,
उपमा कहाँ लौ कहें कविता के कक्ष हैं।
अब कवियों की मातु! बाढ़ जैसी आगई है,
देश की धरा पे जो कि आज लक्ष,- लक्ष हैं।