भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुआँ / मौरीस कैरेम / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलावघर में पैदा हुआ धुआँ
पर चिमनी थी उसके लिए गहरा कुआँ

खिला वो किसी फूल की तरह 
ऊपर उठा धूल की तरह

पर जैसे ही चिमनी से निकला वो बाहर
टूट पड़ा उस पर तेज़ हवा का कहर 

हवा ने उसे
स्वर्ग जाने नहीं दिया
उस दूसरी दुनिया का
सुख पाने नहीं दिया  
 
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय