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धूप / श्रीप्रकाश शुक्ल
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					रूप रेत भर 
धूप खेत भर
फैल गई है चादर ताने 
तट पर 
सूरज नभ पर 
हाँफ रहा है आशा कर-कर 
लौटेगी उसकी यह आभा 
भर-भर रेत
नदी के तट पर 
पर कैसे लौटेगी 
छोड़ उम्र भर 
अभी-अभी तो आई है 
धूप कहाँ भेटी 
रेती को 
जी भर !
रचनाकाल : 10.03.2008
	
	