भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप का दुपट्टा / रचना त्यागी 'आभा'
Kavita Kosh से
धूप हौले-हौले उतार रही है
अपना पीला दुपट्टा
और दिखने लगे हैं
उसके श्यामल केश
संध्या के रूप में!
हवा से हिलते पत्ते
मानो आसमां की बालियाँ!
कुछ ही देर में
श्यामल केश खुल जायेंगे पूरे
और लेंगे रूप निशा का!
पूरी रात अपने
लम्बे काले केश फैलाये
निशा देगी
थपकियाँ धरती को...
फिर सुबह इक दस्तक से
सूरज की
टूटेगी निद्रा धरती की!!