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धूप में जिस्म गलने लगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
धूप में जिस्म गलने लगे ।
पाँव फूलों पर जलने लगे।।
इस तरह थम गई जिंदगी
अश्रु आँखों से ढलने लगे।।
बढ़ गए मुश्किलों को मिटा
सत्य पथ पर जो चलने लगे।।
सारे अरमान जब जल गये
राख चाहों की मलने लगे।।
जब न समझे किसी भी तरह
ले खिलौना बहलने लगे।।
फेर कर मुँह गये इस तरह
जैसे मौसम बदलने लगे।।
की बचाने की कोशिश बहुत
घर उमीदों के जलने लगे।।