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ध्यानदेव का योगी दर्शन / प्रेम प्रगास / धरनीदास

चौपाई:-

पसरी बात देश मंह कैसे। तेल वुन्द जल ऊपर जैसे॥
कहत सुनत सुधि पहुंची तांहा। ध्यानदेव भूपति रहु जांहा॥
श्रद्धा मनसा चलि भौ राजा। निकट सरोवर दर्शन काजा॥
कीन्हो दरश परस वहु चाऊ। दंड चारि तंह विलमे राऊ॥
वोले सिद्ध अमृतरस वानी। परम प्रीति परमारथ जानी॥
योगी युक्ति वहुत मनमाना। चल्यो विदा हवै नृपति सुजाना॥

विश्राम:-

ध्यानदेव मन गुनि कह्यो, वडो सुदिन दिन आज।
कोई सन्त अनुग्रही, भवो हमारो काज॥163॥

चौपाई:-

राजा कहे सुनो हो स्वामी। महापुरुष तुम अर्न्तयामी॥
अब दिन दश करिये विश्रामु। तुमरो सब सेवक यहि ठामू॥
चलु आज्ञा ले नृपति सुजाना। योगी किया तवहिं मन माना॥
पुनि यह प्राणमती सुधि पाई।...
खग पिजरा जस निकसन चहई। तन भीतर मन बाहर रहई॥

विश्राम:-

भोजन वाहर पहुंचे आई। ता दिन देखत वरनि न जाई॥
वैठक विविध विचित्र वनाई। परदेशी जंह आसन लाई॥
चारि सम्प्रदा और दश नामू। शोभित षट दर्शन विश्रामू॥
चौका चरचित चन्दन कीन्हा। रचि रचि हेमपात्र जल दीन्हा॥
वहुत चढायउ रेशम धोती। पाटंवर कर जगमग जोती॥

विश्राम:-

कुंअरि कहै मैना सुनहु, लै आवहु निज राज।
जो तोहरे मन भावाई, लै पहुंचावहु साज॥165॥