भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नए घर पर / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
नए घर पर डाकिए ने कहा —
द्वार पर नम्बर नहीं है
नामवर घर पर नहीं है
डाक कैसे फेंक दूँ अन्दर
मुझे क्या डर नहीं है ?
किस तरह मेरे पड़ोसी ने
सुना सब सहा ।
नए घर पर डाकिए ने कहा —
डाक सारी आप ले लें
नामवर जब घर पधारें
आप ख़ुद जाकर पुकारें
और सारी डाक दे दें
एक लेखक आपके होते
न हो तनहा
नए घर पर डाकिए ने कहा ।