भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नगर प्रवेश / अपर्णा अनेकवर्णा
Kavita Kosh से
गोधूली बीत गई थी
नौसढ़ के पुल से नीचे बहती
राप्ती को देखा
पूर्वोत्तर दिखीं
धू-धू जलती दो चिताएँ
मृत्यु और अग्नि
दोनों सम्मोहित करतीं हैं
तब दिखीं नदी में भी
जलती दो चिताएँ
इस दुगुने ताप से दग्ध
गुज़रती जाती
लहर प्रति लहर - एक नदी
पल-पल जीया एक जीवन
प्रसंग-प्रसंग एक बन्धन
पीछे छोड़ स्मृतियों के
राख-राख अस्थि-फूल
कुछ अग्नि
कुछ जल
कुछ वायु
कुछ आकाश
और कुछ पृथ्वी में
ढूँढ़ लेंगे अपनी जगह
स्थापित हो जाएँगे यूँ
इससे पहले कहीं और
कभी थे ही नहीं
बस, स्मृतियों में
कभी कहीं चुभते रहेंगे