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नदी के उस पार / कुमार रवींद्र
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नदी के उस पार
महानगरी
और उसकी भीड़ अपरंपार
इधर अब भी
पेड़ हैं - पगडंडियाँ हैं
रोशनी है
उधर सड़कें और सड़कें
और उन पर
धुएँ की चादर तनी है
राजपथ पर
एक सपना पत्थरों का
ले रहा आकार
इस किनारे
एक चिड़िया खुले जल पर
उड़ रही है
उधर अनगिन वाहनों की भीड़
फिर अंधी गुफ़ा में
मुड़ रही है
महल के
पिछले सिरे पर
नए युग के बने स्वागत-द्वार
फिर रहे इस ओर
नंगे पाँव बच्चे
सीपियों की खोज करते
'एयरगन' से लैस होकर
उधर के बच्चे
नदी-तट से गुज़रते
आ रहीं हैं
सभ्यता के महावन से
आहटें खूँखार