भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदी - 3 / रोहित ठाकुर
Kavita Kosh से
नदी सो रही है
रेत पर
भींगती हुई
खाली पाँव
वह मजदूर लड़की
भी एक नदी है
खेत में खोई है
भींग रही है ओस से
एक भींगती हुई नदी
एक भींगती हुई लड़की
हमशक्ल हैं
हँसती हुई वह लड़की
इस समय
एक बहती हुई नदी है