नफ़रत का नाश्ता / चंद्रभूषण
लगता है ग़लत चुना
पर चुनने को कुछ था नहीं
होता तो प्यार चुनता
नफ़रत क्यों चुनता
जो कोलतार की तरह
सदा चिपटी ही रह जाती है
कोई चाँस नहीं था
जहाँ तक दिखा नफ़रत ही देखी
उसी का कुनबा उसी का गाँव
उसी का देश और उसी की दुनिया
जहाँ वह कम दिखती थी
लोग उसे प्यार कहते थे
फिर ख़ाली जगह को भर देते थे
उसी से जल्द-अज-जल्द
एक दिन पता चला
यह तो बड़े काम की चीज़ है
चुटकी भर मैंसिल और पोटाश
काग़ज़ पर बराबर से मिलाया
फिर बट्टे से ठोंका
तो लगा, छत सर पर आ जाएगी
इस तरह नफ़रत को नई धार मिली
और धीरे-धीरे ख़ून में घुली
यह सपनीली समझ कि
एक दिन इससे सब बदल जाएगा
लेकिन एक मुश्किल थी
अपनी नींदों में जब हम अकेले होते थे
नफ़रत के लिए कोई निशाना नहीं होता था
तब वह हमीं पर चोट करती थी
स्वप्नहीन रतजगों में उठकर
ख़ाली घड़े खखोरते हुए कई-कई बार
ख़ुद से पूछते थे-
दुनिया जब तक नहीं बदलती
तब तक इस होने का हम क्या करें
क्या ग्रेनेड और बंदूक की तरह
नफ़रत को भी टाँगने के लिए
दीवार में कोई खूँटी गाड़ दें
दरअसल, हमें पता नहीं था
खूँटियाँ तो गड़ चुकी थीं हमारे इर्द-गिर्द
जिन-जिन चीज़ों को हम चाहते थे
जो लोग भी हमारे अजीज थे
उन्हीं पर ओवरकोट की तरह
हमारी नफ़रत टँगने लगी थी
लेकिन हर चीज़ का वक़्त होता है
रूई में रखा ग्रेनेड भी सील जाता है
रोज़ साफ़ होने वाली बंदूक का घोड़ा भी
गोली पर टक करके रह जाता है एक रोज़
तुम जान भी नहीं पाते
और नफ़रत तुम्हारी एक सुबह
बदहवासी में बदल गई होती है
परेड पर निकले फौजी के जूते में
चुभी लंबी साबुत धारदार कील
एक निश्चित ताल के साथ तुम
गुस्से से फनफना रहे होते हो
और लोग तुम्हें देख कर हँस रहे होते हैं
तुम उनसे छिपने की तरक़ीबें खोजते हो
कोई कैमॉफ़्लॉग कि उन जैसे ही कूल दिखो
कुछ गालों पे डिंपल कुछ बालों में ब्रिलक्रीम
अडंड अँग्रेज़ी में अढ़ाई सेर ज्ञान
और कोई हिंट कि जेब में कुछ पैसे भी हैं
बट...ओ डियर, यू डोंट बिलांग हियर
बाक़ी सब मान भी लें तो
ख़ुद को कैसे मनाओगे कि
इतना सब हो जाने के बाद भी
नफ़रत तुम्हारा नाश्ता नहीं कर पाई है