नभ मंडल के विस्तृत आँगन
श्वेत-श्याम घन मचल रहे
उमड़ घुमड़ आकार बदल
नृत्य-पटल-तल फिसल रहे
थिरक रही नव बूँद सृजित
नभ दामिनी स्वर झंकार किए
मृदंग ताल घन गरज-गरज
जल गगरी भर मनुहार किए
छलक-छलक जल बूँद गिरे
तरु पल्लवी सरगम छेड़ रही
फिर टपक-टपक बन बूँद झरी
इठलाती मृदु-जल फेर रही
श्वेत परत जल-घंघरी पहने
फुटक-फुटक करती नर्तन
बन फुहार कण खो जाती
अनवरत करती रहती कीर्तन
अर्द्ध-वृत आकार ले रही
इन्द्रधनुष की अंगराई
सतरंगी रितु छतरी ताने
नृत्य देखने स्वयं आई
रुन्नुक-झुन्नक करती जल पर
झींसी-झींसी बौछार विकल
रिमझिम वर्षा मोह गई मन
मयूरी के भए प्यार सफल...