भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नमक / संज्ञा सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादलों
धैर्य मत खोना
अभी मेरे होंठों में
नमी बरकरार है

उमड़ते-घुमड़ते
गरज़ते और दौड़ते रहना
आँखों में झलक रहा है
पानी अभी

खाया हुआ नमक
घुल रहा है रग-रग में
संचरित हो रहा है ख़ून

आँखें
पठारी शक्ल अख़्तियार कर लें
सूख जाएँ होंठ
तब बरस जाना
कि ज़िन्दगी भर घुलता रहे
मेरी ही रगों में
खाया हुआ नमक