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नयनामृत के भरे कलश / शर्मिष्ठा पाण्डेय

नयनामृत के भरे कलश, क्या बनोगे प्रिय तुम मधुशाला
मैं जो बन जाऊं मोती, क्या बनोगे तुम मोती माला
मैं हार बनूँ
सिंगार बनूँ
मैं प्रीत बनूँ, मनुहार बनूँ
सत तत्व बनूँ, निराकार बनूँ

तन की मैं डालूं समिधा, क्या बनोगे तुम मन की ज्वाला
भाग हविष्य, करूँ अर्पित, क्या बनोगे तुम यज्ञशाला

मैं अर्थ बनूँ
मैं सार बनूँ
स्वर साज बनूँ, झंकार बनूँ
मैं सुधा बनूँ, रसधार बनूँ

मैं सप्तपदी के वचन बनूँ, क्या बनोगे तुम डमरू वाला
मैं वाम अंग रुक्मिणी बनूँ, क्या बनोगे तुम मुरलीवाला

कुछ भी संभव हो या न हो
मन भाव भरे, दुर्भाव में हो
भले सूर्य भी बैठा छाँव में हो
आशा का आविर्भाव न हो
प्रिय! बने शपा जब वन पलाश, तुम बन जाना मृग मतवाला