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नरम फूल की पंखुरी से / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
जले ये रसीले अधर क्यौं
बजाये बिना बाँसुरी से
नयन ने पखारे ही तो थे
चरण वे गुलाबी-गुलाबी
नयन के दुलारे ही तो थे
नयन वे शराबी-शराबी
निछावर किया था खुदी को
बिछाया था तलवों तले दिल
तराशा गया फिर हृदय क्यौं
नरम फूल की पंखुरी से
गरम साँस के बाजुओं में
सिमट कर समाया न कोई
धड़कते हुए दिल को दिल से
दबाने भी आया न कोई
दिखा कर अधूरी अदायें
उमड़ रह गयी थीं घटायें
पड़े अपने आँसू ही पीने
भरी अपनी ही अंजुरी से
-3.1.1973