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नवगीत वाले दिन / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
आ गए हैं
शहर में
नवगीत वाले दिन
दूर से आये
सगुन पाँखी
लिए मोहक तराने
शहर ने मन में बसाए
पंछियों के सुर सुहाने
प्यार में
खोये हुए
मनमीत वाले दिन
बस ज़रा सी
धूप में
कुछ ठंड की रस्साकसी है
इन हवाओं में घुली ज्यों
गीत की निश्छल हँसी है
कान में
बजते
मधुर संगीत वाले दिन
एक सपने में
यहाँ पर
समय है ठहरा हुआ सा
है नदी के सतह पर
फैला हुआ धुँधला कुहासा
रेत पर
अंगड़ाई लेते
शीत वाले दिन
आ गए हैं
शहर में
नवगीत वाले दिन