नवल नीरज नील जल पै धीर निरखन की छटा।
धौं सखी मृदु बाल ससि पै सांवरी घेरी घटा॥
धौं सजन भ्रू भौंर जल में मीनयुग छबि में फँसी।
धौं चपल ससि की कला प्रतिबिंब बन जल में धँसी॥
चित्त चंचल धौं अचंचल आजु जमुना नीर है।
देखु आली छबि निराली आज जमुना तीर है॥