(राग भैरव)
नहिं ममता, नहिं कामना, नहीं संग, अभिमान।
बिनय, त्याग भरपूर हिय, सो सेवक मतिमान॥
सेवक सेवा छाँडि कै, चहै न संपति स्वर्ग।
सेवा ही है परम फल, परम धर्म, अपबर्ग॥
(राग भैरव)
नहिं ममता, नहिं कामना, नहीं संग, अभिमान।
बिनय, त्याग भरपूर हिय, सो सेवक मतिमान॥
सेवक सेवा छाँडि कै, चहै न संपति स्वर्ग।
सेवा ही है परम फल, परम धर्म, अपबर्ग॥