भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं भय त्रास होता है / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
अनागत अंत का स्वागत, नहीं भय त्रास होता है।
विकट अंतिक अमावस के, सुखद अहसास होता है।
सजे सत्कर्म से जीवन, करो निज धर्म साधक मन,
नियति हो पुण्य कर्मों का, वही संन्यास होता है।
यही संकल्प हो अपना, न कोई भूख से सोये,
सतत हम दीन रक्षक हों, नहीं उपवास होता है।
अमर कोई नहीं जग में, गमन है आगमन निश्चित,
नशा जीवंत जीने का हृदय वह खास होता है।
बहाओ प्रेम की गंगा, यही हो आज का नारा,
सफल आराधना होगी, सदा विश्वास होता है।