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नहीं सहूँगा गधा शब्द अब / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
देखो अम्मा उसने मुझको,
फिर से गधा कहा।
मेरे सिर पर लगे कहीं क्या,
गधे सरीखे कान?
लदा पीठ पर किसने मेरी,
देखा है सामान?
ढेंचू ढेंचू मुझे रैंकते,
किसने कहाँ सुना?
देखा है क्या अम्मा तुमने,
मुझको चरते घास?
गधे सरीखा किसने देखा,
मुझको खड़ा उदास?
झाड़ दुल्लती मैंने बोलो,
कहाँ किसे पटका?
बोलो किस मालिक से मुझको,
पड़ी लट्ठ की मार?
बोलो किस धोबी का मैंने,
खूंटा दिया उखाड़?
बोलो कहाँ सताया किसको,
किसे कहाँ दचका?
जरा ठीक से देखो तो, मैं,
हूँ बालक नादान।
गधा कहाँ? मैं तो हूँ कल का,
धीर वीर इंसान।
नहीं सहूँगा "गधा" शब्द अब,
अब तक बहुत सहा।