ना'त ह० मुहम्मदरसूलुल्लाह / नज़ीर अकबराबादी
तुम शहे<ref>बादशाह</ref> दुनियाओ दीं<ref>मज़हब</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा<ref>इंसानी बुराइयों से साफ हज़रत मुहम्मद</ref>।
सर<ref>सरदार</ref> गिरोहे<ref>झुंड</ref> मुसलमीं<ref>मुसलमान, मुसलमानों का सरदार</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा।
हाकिमे दीने मतीं<ref>गंभीर</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा।
क़िब्लऐ<ref>सम्मानित</ref> अहले यक़ीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा।
रहमतुल लिल आलमी<ref>संसार का</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥1॥
आस्मां तुमने शबे मैराज<ref>मैराज ऊपर चढ़ने की सीढ़ी शबे मैराज-हज़रत मुहम्मद के आस्मान पर चढ़ने की रात</ref> को रोशन किया।
अर्शो<ref>आस्मान का छोटा तख़्त</ref> कुर्सी<ref>रोशनी, प्रकाश</ref> को क़दम अपने से दे नूरो ज़िया<ref>रोशनी, प्रकाश</ref>।
रंगो बू<ref>खुशबू</ref> जन्नत के गुलशन की बढ़ाई बरमला<ref>लोगांे के सम्मुख, खुल्लम खुल्ला सामने</ref>।
जिस जगह वहमे मलायक<ref>फरिश्तों</ref> को नहीं मिलती है जां<ref>जगह</ref>।
वां के तुम मसनद नशीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥2॥
है तुम्हारी पुश्त पर मुहरे नबुव्वत<ref>नबी। ईश्वर के दूत होने का निशान</ref> का निशां।
और तुम्हारा वस्फ़<ref>तारीफ</ref> है त्वाहा<ref>कु़रान मजीद के सोलहवें पारे की एक सूरत मुहम्मद साहब का एक नाम</ref> व यासीं<ref>कु़रान शरीफ़ के बाइसवें पारे की एक सूरत जो मरते समय मुसलमानों को सुनाई जाती है</ref> में अयां<ref>ज़ाहिर</ref>।
मोजिजे<ref>चमत्कार</ref> जो हैं तुम्हारे उनका कब होवे बयां।
किशवरे ऐजाज<ref>चमत्कार, करामात</ref> जो है उसके तुम बा इज़्ज़ो शां<ref>वैभव, प्रताप, शानो शौकत</ref>।
साहिबे ताजो नगीं<ref>मोती</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥3॥
तुमको ख़त्मुल अम्बिया<ref>नबियों</ref> हक़<ref>सच</ref> भी हबीब<ref>दोस्त</ref> अपना कहे।
और सदा रूहुल अमीं<ref>हज़रत जिब्रील</ref> आवें अदब<ref>आदर, सम्मान</ref> से बही ले।
किस नबी<ref>ईश्वर का पैगाम</ref> को यह मदारिज<ref>दर्जे</ref> हैं तुम्हारे से मिले।
है नबुव्वत<ref>पैगम्बरी</ref> का जो अकदस<ref>बड़ा पाक</ref> बह्र<ref>समुद्र</ref> तुम उस बह्र के।
गौहरे<ref>मोती</ref> यक्ता<ref>अनुपम</ref> तुम्हीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥4॥
हैं जो यह दोनों जहां<ref>इहलोक और परलोक</ref> की आफ़रीनिश<ref>पैदायश उत्पत्ति</ref> के चमन।
जिसमें क्या कुछ अयां<ref>प्रकट</ref> है सनए ख़ालिक के जतन।
बाइसे<ref>कारण हेतु</ref> ख़ल्क़ उनके हो तुम या हबीबे जुलमनन<ref>अहसान वाले</ref>।
और एक मतला<ref>ग़ज़ल का प्रथक शैर जिसके दोनों मिस्रों में क़ाफ़िया हो</ref> पढूं मैं युमन<ref>मुबारिकी, शुभकारिता</ref> से जिसके सुख़न।
सौ सआदत<ref>मुबारिकी, शुभकारिता</ref> के करीं<ref>समीप</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥5॥
तुम ज़हूरे<ref>प्रकट होने वाले</ref> अव्वली<ref>पहले</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा।
तुम ही खैरुल आखि़री<ref>अन्तिम और श्रेष्ठ</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा।
हमदमे<ref>प्यारा, हरदम साथ रहने वाला</ref> जां आखि़री<ref>शरीर में प्राण डालने वाला ईश्वर</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा।
वजहे<ref>मुंह</ref> कुरआने मुबीं<ref>ज़ाहिर</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥
नुज़हते<ref>बे ऐब, पवित्र निर्दोष</ref> बुस्ताने<ref>फुलवाड़ी</ref> दीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥6॥
हअमदे मुख़्तार<ref>आज़ाद</ref> हो तुम या शहे हर दो सरा।
है तुम्हारे हुक्म के ताबे<ref>मातहत</ref> क़दर<ref>हुक्म इलाही</ref> भी और क़जा॥
ख़ल्क़ में ख़्वाहिश से तुम जिस अम्र<ref>हुक्म</ref> की रक्खो बिना।
देर एक पल दरमियां आये नहीं मुमकिन ज़रा॥
जिस घड़ी चाहो वहीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥7॥
आपके नक़्शो क़दम<ref>पद-चिह्न</ref> से जो मुशर्रफ़<ref>प्रतिष्ठित</ref> हो जमीं।
देखता है उसकी रफ़अत<ref>बुलंदी</ref> रात दिन अर्शे<ref>ऊँचा आस्मान</ref> बरीं।
राज<ref>भेद</ref> तो ख़लक़त<ref>पैदायश, दुनिया</ref> के तुमको ही खुले हैं शाहे दीं<ref>दीन के बादशाह</ref>।
और जो जो कुछ कि हैं असरारे<ref>भेद</ref> रब्बुलआलमी<ref>सारे जहान के मालिक</ref>॥
सबके तुम बरहक़<ref>सच</ref> अमीं<ref>अमानतदार</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥8॥
आपका फ़ज़्लो करम<ref>रहम और बख़्शिश</ref> कौनेन<ref>लोक, परलोक</ref> में मशहूर है।
और तुम्हें हर तौर से लुत्फ़ो करम<ref>महरवानी और करम</ref> मंजूर है।
हश्र<ref>कयामत</ref> में गरचे<ref>यद्यपि</ref> सज़ा मिलने का भी दस्तूर<ref>कानून</ref> है।
क्या हुआ लेकिन दिल इस उम्मीद से मसरूर<ref>ख़ुश</ref> है।
तुम शफ़ीउल<ref>सिफारिश करने वाला</ref> मुजि़्नबी<ref>पापी, गुनाहगार</ref> हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥9॥
मुख़बरे<ref>ख़बर देने वाला</ref> सादिक़<ref>सच्चा</ref> हो तुम और हजरते खै़रुलवरा<ref>संसार का भला चाहने वाला</ref>।
सरवरे<ref>सरदार</ref> हर दो सरा<ref>लोक-परलोक</ref> और शाफ़ए<ref>शफाअत करने वाला</ref> रौजे़ जज़ा<ref>हिसाब का दिन</ref>।
है तुम्हारी जाते वाला<ref>व्यक्तित्व श्रेष्ठ है</ref> मुम्बए<ref>चश्मा</ref> लुत्फ़ो अता<ref>महरवानी और बख़्शिश</ref>।
क्या ”नज़ीर“ एक और भी सबकी मदद का आसरा।
यां भी तुम वां भी तुम्हीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा॥10॥