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नाकामिए-जावेद है इनआमे महब्बत / मेला राम 'वफ़ा'
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नाकामिए-जावेद है इनआमे महब्बत
नाकामे-महब्बत नहीं नाकामे-महब्बत
वाबस्ता-ए-आग़ाज़ थी ये है शामे-महब्बत
वो सुब्हे महब्बत थी ये है शामे-महब्बत
क्या हो गई ये सूरते-अय्याम -महब्बत
वो सुबहे-महब्बत है न वो शामे-महब्बत
था सुब्हे-महब्बत पीवे गुमां शामे अवध का
थी सुब्हे बनारस से हसीं शामे-महब्बत
पड़ता है कभी चैन न लगती है कभी आंख
आफ़त है अज़ाबे-सहर-ओ-शाम-महब्बत
छोड़ आये हैं दिल हुस्न के उस शहर में हम भी
आये न जहां से कभी पैग़ामे-महब्बत
डरते हैं वो दुनिया से ख़ुदा से नहीं डरते
डरते हैं जो लेते हुए इल्ज़ामे-महब्बत
इल्ज़ामे-महब्बत दो ब-सद शौक़ मुझे तुम
लेता हूँ ब-सद शौक़ में इल्ज़ामे-महब्बत
हुशियार ख़बरदार कि ये दामे-रिया है
समझा है जिसे तू ने 'वफ़ा' दामे-महब्बत।