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नाम-जाप के सिवा / नंदकिशोर आचार्य

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नाम में क्या रखा है-
कहा था कवि ने।

नाम ही तो, कवि, कविता है
सारी दुनिया अर्थ है जिसका
नाम होने को बेकल हैं
सब आवाज़ें;

नाम ही है गुलाब वह
महक उठता है जिसे सुन कर
तरंगित आकाश

इस नाम-जाप के सिवा
बचा ही क्या है
कवि के पास?