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नारी नैनन नीर / प्रेमलता त्रिपाठी
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नदिया नारी नैनन नीर ।
पुण्य धरा तट धारा तीर ।
नव नव नूतन नारी रूप,
प्रीति प्राण सी बहे समीर ।
शीतल करती छूकर मर्म
दुर्गा बनकर हरती पीर ।
भूल करें मानव अज्ञान,
क्षमा दया का देती क्षीर ।
अंध मिटा भरती संज्ञान
ऊषा सम करती हृद हीर,
दिशा बोध दे पंथ पुनीत,
प्रेम तापसी पथिका वीर ।