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ना मजबूर करों किसी को / मधुछन्दा चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
माली कभी मजबूर नहीं करता
कली को खिल जाने के लिए
वक्त होता है उसका अपना
वह खिल जाती है।
धरती मजबूर न करती
बादलों को बरसने के लिए
सावन आता है तो
बादल बरस जाते हैं।
धूप-छाँव तो होती है राहों में
पर राही मजबूर नहीं किसी के लिए
चलता जाता है वह रुकता न कभी
जब मंजिल आती है
ठहर जाता है वह मंजिल की छाँव में।
प्यार में क्या मजबूरी है
प्यार तो होता है अपने ही आप
दिल मजबूर नहीं प्यार के लिए
वह यूं ही करता प्यार
प्यार पाए न पाए वह
प्यार होता है करता जाता है प्यार।