निरापद / हेमन्त कुकरेती
इज़्जत बचाने के लिए उचक्कों से दोस्ती करनी पड़ रही है
चोर से बचने के लिए पुलिस का नम्बर नहीं मिलाता
राहजन की छाया में चलना पड़ता है कि
लुटेरे की नज़र न पड़े
ठग के सामने लेना पड़ता है डाकू का नाम
जेबकतरों के सामने खुद को दिखाना पड़ता है ऐसे कि
हम बटमार हैं
सेंधमार की तरह घुसना पड़ता है अपने ही घर में
और गाँव में साथ ले जाना पड़ता है अजनबी को
धर्म का नाम लेना सन्दिग्ध हो गया है या व्यर्थ
राजनीति कहते ही समझ आ जाता है कि
समय पर काम पर जाने
और लौटने में भी राजनीति है
घर जाने के समय कहना पड़ता है जाना है बाज़ार
और नौकरी बजाने से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि
लगे मस्ती कर रहे हैं
किसी की गलती पर
कहना नहीं कि माफ़ किया
हँसना कि हमसे भी हुई हैं कई भूलें
कई पैर छूकर लगता है दे रहे हैं गाली
फिर भ उनसे मिलाना पड़ता है हाथ
हर उपलब्धि एक भय है
पा जाने पर पता चलता है गँवा रहे हैं बहुत सारा
यही काम रह गया ख़तरे से खाली कि कुछ न करें
जो गुज़र रहा है उसे देख-सुनकर
यही बोलने में भलाई है कि
हमें आता ही नहीं बोलना