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निवेश / गुलशन मधुर
Kavita Kosh से
मैं जितना अधिक
व्यय होता चला गया
तुम में
उतने ही अधिक व्याज सहित
लौटा हूं सदा स्वयं में
कहीं अधिक समृद्ध
अधिक भरा पूरा
ऐसे संतृप्त
पहले कब थे रात दिन
ऐसा सम्पन्न तो
पहले कभी नहीं था मैं